क्या हम स्वच्छ सुखी समाज भारत को दे पाएंगे
भारत विविधताओं वाला देश है और यही हमारा गौरव है
शांति सद्भावना और एकता देश के प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है
आज भारत के प्रगति के किस्से दुनिया भर में सुने जा रहे हैं| पर अभी भी हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास रोजगार नही है आज हमारे देश को आजाद हुए 71 वर्ष हो गये हैं। लाखों लोगों ने अपने को इसी आजादी के लिए बलिदान किया था, परिवार छोड़े थे, अपनों को खोया था, अपने जमे-जमाये कारोबार की शहादत दे दी थी, बड़े-बड़े पदों को लात मारी थी और राष्ट-देवता की बलिवेदी पर कुर्बान हो गये थे। इतनी बड़ी कीमत अदा करने के बाद भी जब हम हिन्दुस्तान के स्कूलों से हिन्दी को गायब पाते हैं, संस्कृत की भारी उपेक्षा देखते हैं, किसानों को सभी ओर से कमजोर पाते हैं, गायों को मरता हुआ पाते हैं, वाणी और लेखनी को परावलम्बन की त्रासदी से जकड़ा पाते हैं, अनेक देशवासियों को आर्थिक दासता से ग्रसित देखते हैं तथा नैतिक व सांस्कृतिक मूल्यों की गिरावट के दर्शन स्थान-स्थान पर होते हैंय तब लगता है कि भारत में एक सांस्कृतिक क्रान्ति की और आवश्यकता है
अगर हम आज सचमुच औपचारिक रूप से आजाद होते तो हमारा देश का नाम इंडिया नहीं भारत होता ।
हमारे देश को आजाद हुए 71 साल हो गए फिर भी देश में पर्याप्त संसाधन नहीं है सड़कों की कमी आज भी ट्रेनों में पर्याप्त जगह नहीं है और सरकार बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रही है कुछ दिन पहले बाढ़ में लाखो लोग मर गए फिर भी उन्हें कोई होश नहीं
दुख हमारे देश के नेताओं को नहीं हमे है इसलिए आजकल के लोग ज्यादातर नेता बनना चाहते हैं मैं यह नहीं कह रहा कि सभी नेता इनमे से कुछ नेता , आज भी देश में 10% आबादी के पास पासपोर्ट है जबकि हमारे देश मैं बाकीओ के पास ये सेवा उपलब्ध नही
जिससे वह देश विदेश घूम कर उत्तम शिक्षा नॉलेज इत्यादि प्राप्त कर सके और देश के विकास मैं सहायक हो सके , और देश प्रगति के मार्ग पर चल सके
भारत विविधताओं वाला देश है और यही हमारा गौरव है
शांति सद्भावना और एकता देश के प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है
आज भारत के प्रगति के किस्से दुनिया भर में सुने जा रहे हैं| पर अभी भी हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास रोजगार नही है आज हमारे देश को आजाद हुए 71 वर्ष हो गये हैं। लाखों लोगों ने अपने को इसी आजादी के लिए बलिदान किया था, परिवार छोड़े थे, अपनों को खोया था, अपने जमे-जमाये कारोबार की शहादत दे दी थी, बड़े-बड़े पदों को लात मारी थी और राष्ट-देवता की बलिवेदी पर कुर्बान हो गये थे। इतनी बड़ी कीमत अदा करने के बाद भी जब हम हिन्दुस्तान के स्कूलों से हिन्दी को गायब पाते हैं, संस्कृत की भारी उपेक्षा देखते हैं, किसानों को सभी ओर से कमजोर पाते हैं, गायों को मरता हुआ पाते हैं, वाणी और लेखनी को परावलम्बन की त्रासदी से जकड़ा पाते हैं, अनेक देशवासियों को आर्थिक दासता से ग्रसित देखते हैं तथा नैतिक व सांस्कृतिक मूल्यों की गिरावट के दर्शन स्थान-स्थान पर होते हैंय तब लगता है कि भारत में एक सांस्कृतिक क्रान्ति की और आवश्यकता है
अगर हम आज सचमुच औपचारिक रूप से आजाद होते तो हमारा देश का नाम इंडिया नहीं भारत होता ।
हमारे देश को आजाद हुए 71 साल हो गए फिर भी देश में पर्याप्त संसाधन नहीं है सड़कों की कमी आज भी ट्रेनों में पर्याप्त जगह नहीं है और सरकार बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रही है कुछ दिन पहले बाढ़ में लाखो लोग मर गए फिर भी उन्हें कोई होश नहीं
दुख हमारे देश के नेताओं को नहीं हमे है इसलिए आजकल के लोग ज्यादातर नेता बनना चाहते हैं मैं यह नहीं कह रहा कि सभी नेता इनमे से कुछ नेता , आज भी देश में 10% आबादी के पास पासपोर्ट है जबकि हमारे देश मैं बाकीओ के पास ये सेवा उपलब्ध नही
जिससे वह देश विदेश घूम कर उत्तम शिक्षा नॉलेज इत्यादि प्राप्त कर सके और देश के विकास मैं सहायक हो सके , और देश प्रगति के मार्ग पर चल सके
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें